इस बीमारी में पेनक्रिआज़ यानि स्वादुपिंड पर सूजन लम्बे समय के लिए होता है। पेनक्रिआज़ हमारे पाचन तंत्र का एक अंग है, जो पेट के उप्परी हिस्सेमें लिवर से निचे और जठर के पीछे स्थित होता है। पेनक्रिआज़ खुराक के पाचन के लिए जरुरी डाईजेस्टिव एन्ज़ाइम बनाता है। वो ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखने वाले इन्सुलिन और अन्य हॉर्मोन भी पैदा करता है।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस समय के साथ धीरे धीरे बढ़ता है और पेनक्रिआज़ में irreversible यानि स्थायी बदलाव होते है। पेनक्रिआज़ पर इतना असर होता की वो कड़ा, ठोस और सिकड़ा हुआ बन जाता है। इस प्रक्रिया में पेनक्रिआज़ की मुख्य नली एक या अनेक जगह पर सिकुड़ कर संकुचित हो जाती है, खासकर उसके आंतो में खुलने की जगह के पास । आखिरकार इस नली में पथरी बनना शुरू होती है। इससे भोजन के बाद स्वादुपिंड के रस को आंतो में पहुचनेमे रूकावट होती है। समय के साथ स्वादुपिंड की पूरी नली चौड़ी हो कर पथरी से भर जाती है।
संवेदनशील व्यक्तिओं में स्मोकिंग और शराब पेनक्रिआज़ पर सूजन की शुरआत का कारण बन सकते है। पेनक्रिआज़ पर लम्बे समय के सूजनके अन्य कारण है जेनेटिक, ऑटोइम्म्युन और न्यूट्रिशनल फेक्टर्स। कुछ मरीजोंमे क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस का कारण अज्ञात ही रह जाता है।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस का सबसे अहम् लक्षण होता है लम्बे समय का पेटका दर्द। पेट का दर्द शुरआत में आंतरायिक होता है , यानि रुक रुक के होता है। समय के साथ दर्द ज्यादा फ्रिकवंतली होने लगता है, और कईबार दर्द कांस्टेंट बना रहता है। दर्द पेट के उप्परी हिस्सेमें, नाभि और सीने के बीचमे होता है, बेहद तेज़ होता है जैसे किसीने वहा छुरा भौका हो। कई बार दर्द वहा से पीछे कमर की और भी जाता है। आम तौर पर दर्द खाना खाने के बाद शुरू होता है, खास कर चर्बीयुक्त खुराक के बाद। खाने के बाद दर्द इसलिए होता है की, खुराक के पाचन के लिए जो पाचक द्रव्य पैंक्रियाज से छूटता है, वो पैंक्रियाज की नलिमे फस जाता है और नली के अंदर प्रेशर को बढ़ा देता है।
जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है दर्द बना का बना रहता है, और इतना तीव्र हो जाता की मरीज बेहाल हो जाता है। ठोस और सूजन वाले पेनक्रिआज़ में नर्व एंट्रेपमेंट की वजह से इसतरह तीव्र दर्द लगातार बना रहता है। ऐसे कई मरीज रोज पेनकिलर टेबलेट लेते है और बिच बिच में कई बार दर्दको कंट्रोल करने के लिए इंजेक्शन भी लेने पड़ते है। कई बार दर्द इतना परेशान करता है की नोर्मल जीवन व्यतीत करना मुश्किल हो तजा है।
जब पैंक्रियाज ठीकसे काम नहीं करता, तब शरीर खुराक का पाचन ठीक से नहीं कर पाता। इसलिए क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के दर्दीओको खुराक में से जरुरी पोषण नहीं मिल पाता। और इससे कुपोषण, नर्म हड्डिया और दृस्टि में कमी जैसी समस्या पैदा होती है।
बदबूदार, चिकनी और चर्बीयुक्त टट्टी होना और वजन में कमी होना, क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के आखरी स्टेज में देखने को मिलता है। ये स्थिति दर्शाती है की, पाचन द्रव्य बनाने केलिए उपयुक्त मात्रा में स्वादुपिंड के healthy cells अब नहीं बचे है।
पैंक्रियाज के नुकसान की वजह से मरीज को डायबिटीज भी हो सकता है, और ब्लड शुगर के कंट्रोल के लिए इन्सुलिन के इंजेक्शन की भी जरुरत हो सकती है।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के कुछ दर्दीओको पीलिया यानि जॉन्डिस हो सकता है। पित्त की नली का निचला हिस्सा पैंक्रियाज में होकर जाता है, और जब पैंक्रियाज कड़ा और संकुचित होता है तब इस नली पर बाहरी दबाव आता है। इससे लिवर से आंत में जाने वाले पित्त के प्रवाह में रूकावट होती है और पीलिया होता है ।
कुछ मरीजों में Pseudocyst नामक समस्या पैदा होती है। पैंक्रियाज की नली में लम्बे अरसे के रूकावट और बढे हुए प्रेशर की वजहसे, किसी एक जगह से नली टूट जाती है। इससे पाचक द्रव्य बाहर लीक होता है, वहा नुकसान करता है, और एक infected cyst बनता है ।
कुछ रोगियों में, पोर्टल शिरा(vein) में थक्का(clot) बन जाता है। पोर्टल शिरा पैनक्रिआस के ठीक पीछे स्थित है और कुछ रोगियों में, पैनक्रिआस इस नस को सीधे नुकसान पहुंचा सकता है। पोर्टल वेइन थ्रोम्बोसिस से स्प्लेनोमेगाली और रक्त की उल्टी हो सकती है।
ब्लड टेस्ट आमतौर पर पुरानी अग्नाशयशोथ के निदान में सहायक नहीं होते हैं। अधिकांश रोगियों में सीरम एमाइलेज सामान्य है, सिवाय इसके कि अगर तीव्र अग्नाशयशोथ का एक सुपरएडेड एपिसोड होता है।
CT scan में पैंक्रियाज सिकड़ा हुआ और पेनक्रिआज़ की मुख्या नली चौड़ी पायी जाती है। स्वादुपिंड की नलिमे पथरी है या नहीं ये भी जाना जा सकता है। कुछ मरीजों में मुख्य नलिके बाहर पैंक्रियास में या नाली की साइड ब्रांच में पथरी जमा हुई हो उसका भी अनुमान लगाया जाता है।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के कम्प्लीकेशन जैसे के जॉन्डिस, pseudocyst, splenic vein thrombosis और spleen यानि तिल्ली का बड़ा होने की जानकारी भी CT scan से मिलती है। ये कम्प्लीकेसन की जानकारी के अनुरूप इलाज के प्लानिंग में बदलाव की आवश्यकता रहती है। इसलिए कॉम्प्लिकेशन के बारे में जानना बेहद महवपूर्ण है।
MRCP एक खास प्रकारका MRI है, जो पैंक्रियाज की नली, उसमे बनने वाली पथरी की बारीकी से जानकारी देता है। MRCP पित्त की नली चौड़ी होने या न होने की स्पष्ट जानकारी देता है। क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के इलाज के लिए ये सारी जानकारी बेहद जरुरी है।
इलाज का मुख्य उद्देश्य होता है पेट दर्द से मुक्ति पाना, शरीर का पोषण बनाये रखना, बीमारी को बढ़ने से रोकना, कोम्प्लीकेशन को होने से रोकना और quality of life सुधारना।
बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए, शराब, धूम्रपान और कुछ दवाइयां जो ये बीमारी को बढाता है उनको avoid करना जरुरी है।
दर्द को काबू में करना इलाज का विशेष भाग है। इसके लिए पेइनकिलर दवाइयां जैसे NSAID, नारकोटिक दवाइयां, पेइनकिलर इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है। कई बार celiac nerve blocks जैसी प्रक्रिया भी की जाती है।
चर्बीयुक्त आहार को टालना और Pancreatic enzyme supplement दवाइयो का इस्तेमाल, दर्द को नियंत्रण में रकने के लिए और शरीर के पोषण को सुधरने के लिए किया जाता है।
जब पेनक्रिआज़ की नली में सिक्डन और पथरी होती है तब, पथरी को निकलना और पैंक्रियास के पाचन रस का आंतो में प्रवाह फिर से कायम करना जरुरी होता है। बीमारी और स्वादुपिंड के नुकसान को और बढ़ने से रोकने केलिए , और कोम्प्लीकेशन्स न हो इसके लिए ये आवश्यक है। ERCP नामक एंडोस्कोपिक प्रक्रिया से या सर्जरी के द्वारा ये किया जाता है।
इस प्रक्रिया में एंडोस्कोप को आपके मुंह से होते हुए आंत के उस हिस्से तक पहुंचाया जाता है जहा पेनक्रिआज़ की नली खुलती है। फिर नली के मुख से एक गाइड वायर नली के अंदर पसार किया जाता है। एक डाइलेटर को वायर के ऊपर पसार किया जाता है, जिससे नली का सिकड़ा हुआ हिस्सा चौड़ा किया जा सके। उसके बाद में बलून केथेटर की मदद से पथरी को निकाला जाता है। कई बार पथरी को तोड़ने के लिए ERCP से पहले ESWL यानि external shock wave therapy का इस्तेमाल किया जाता है। आखिरमे नली में स्टेंट रखा जाता है, जिसे कई बार बदलने की जरुरत पड़ती है।
सही से चुने हुए मरीजों में, जिनमे नली में कम और छोटी पथरीआ हो, कम जगह पर सिक्डन हो, वैसे मरीजों के इलाज के लिए ERCP सही विकल्प होता है। जिन मरीजों को ERCP से फायदा होता है उनको सर्जरी से बचाया जा सकता है। अभी के समय में ERCP standard और सर्वस्वीकृत प्रक्रिया है और कई मरीजों में अच्छे परिणाम मिलते है। पर हमें ये याद रखना चाहिए की ऑपरेशन न होने के बावजूद इसके भी अपने जोखिम है, खास कर अगर इसे ज्यादा बार करनेकी जरुरत पड़ती है तो।
सर्जरी उन रोगियों के लिए अंतिम असरकारक विकल्प और उम्मीद है जो अधिकतम दवाइयाँ और एंडोस्कोपिक उपचार के बावजूद परेशान हैं।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के वो मरीज जिन्हे बार बार दर्द उठता है, तेज दर्द होता है, जिन्हे बार बार या लगातार दर्दकी दवाइयां लेनी पड़ती है, और जिनकी पेनक्रिआज़ की नली चौड़ी हो गयी हो और पथरी से भरी हो उनके लिए सर्जरी श्रेष्ठ विकल्प है।
जिन क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के मरीजों में बीमारी काफी बढ़ गयी हो, पीलिया और pseudocyst जैसे कोम्प्लीकेशन हुए हो उनके इलाज के लिए सर्जरी बेहतर विकल्प है।
वो सभी मरीज जिन्होंने ERCP और स्टेंटिंग करवाया है, मगर उसके ६-८ सप्ताह के बाद भी बार बार दर्द उठता है, उन्हें दर्द में बेहतर राहत के लिए और बेहतर जीवन स्तर के लिए सर्जरी का सहारा लेना चाहिए।
वो सभी मरीज जिन्होंने कई बार एंडोस्कोपिक स्टेंटिंग करवाया हो और जिन्हे और कई बार स्टेंटिंग दोहरानेकी जरुरत हो, उन्हें एक बार सर्जरी करवा कर लम्बे समय के लिए समस्या से छुटकारा मिलता है।
क्या सर्जरी करनी होगी ये निर्भर करता है, की बीमारी कितनी बढ़ी हुयी है और कौन से कम्प्लीकेशन जुड़े हुए है। मगर ज्यादातर मरीजों के लिए, सर्जरी में पेनक्रिआज़ की पूरी नली को खोलना, सारी पथरिओ को निकलना, पेनक्रिआज़ के हेड से छोटे हिस्से को निकलना और खुली हुयी नली को आंत के साथ फिर से जोड़ना, इतनी प्रक्रियाए की जाती है। इस सर्जरी को Frey’s procedure कहा जाता है।
क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस के इलाज और सर्जरी के सदीओ के इतिहास से हमें ये सिख़ मिली है की, उपर बताई प्रक्रिया में कोई भी कमी रखने पर दर्द में पूर्ण राहत नहीं मिलती। यानि अगर पेनक्रिआज़ की टेइल के हिस्से की नली न खोली जाये, या हेडसे छोटे हिस्से को न निकला जाये या नाली की साइड ब्रांच की छोटी छोटी पथरिओ को न निकला जाये तो परिणाम उतने बेहतर नहीं मिलते। ये इसलिए है की ऐसी स्थिति में पेनक्रिआज़ के वो हिस्से से पाचन रस का प्रवाह अटक जाता है, जो सूजन और दर्द बनाए रखता है।
और यही वजह है की ERCP में कई बार स्टेंट बदलने की जरुरत रहती है। क्युकी पाचन रस केप्रवाह को बनाये रखने का काम मात्र १० f की, यानि पेन की रिफिल के साइज के स्टेंट से होता है। जो काफी आसानीसे और तेजीसे ब्लॉक हो सकता है। जबकि सर्जरी में पेनक्रिआज़ की पूरी नली को खोलके आंत के साथ जोड़ दिया जाता है। ये नया रास्ता ब्लॉक या बंध नहीं होता और पथरिया फिरसे नहीं बनती, अगर सर्जरी पूरी बारीकीसे की जाये तो।
हालाकि, ये सर्जरी एक बड़ी और जटिल सर्जरी होती है, पर जब उचित जांच, तैयारी और पूरी सावधानी से की जाये तो कम काफी जोखिम के साथ उत्कृस्ट परिणाम मिलते है। दर्द बिना का जीवन, शारीरिक पोषण और उच्च स्तरका जीवन।
इलाज के विकल्प को चुनने के लिए, उपलब्ध प्रक्रियाओ के सफलता की मात्रा, उसमे रहे जोखिम और फायदे को बनाये रखने के लिए प्रक्रिया को दोहराने की जरुरत, ये सारी बातो को ध्यान में रखना चाहिए।
Cochrane study जो दुनियाभर की सारी स्टडीज का संकलन करती है, उसके अनुसार एडवांस्ड क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस में सर्जरी से एंडोस्कोपिक प्रक्रिया के मुकाबले ज्यादा बेहतर परिणाम मिलते है।
आपके के लिए कौनसा इलाज सबसे उचित है ये समजने के लिए आपको स्पेशिआलिस्ट डॉक्टर की मुलाकात लेनी चाहिए। स्पेशिआलिस्ट डॉक्टर आपकी उम्र, दर्दकी गंभीरता, सम्बंधित कोम्प्लीकेशन, डायबिटीज और पाचन रस में भारी कमी होना ये सारे फेक्टर्स को ध्यानमें रखकर आपको उचित इलाज का सुझाव करेंगे।
समय पर उचित इलाज से, क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस का मरीज दर्द मुक्त सामान्य जीवन जी सकता है।
निचे की लिंक क्लिक करके सुनिए हमारे कुछ मरीजो के क्रोनिक पेनक्रिआटाइटिस से लड़त के अनुभव
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