एकेलेसिआ कार्डिआ खुराक और प्रवाही निगलने में दिक्कत का एक महत्वपूर्ण कारन है । इस बीमारी के निदान के लिए विशिष्ट जाँच और इलाज के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर की आवश्यकता है। ये समस्या जानलेवा न होते हुए भी, इसका समय पे सही इलाज, अच्छा जीवन जीने के लिए बेहद जरुरी है।
एकेलेसिआ एक अनूठी अवस्था है जिसमे मरीज को खुराक और प्रवाही निगलनेमें दिकत होती है। सामान्य तौर पर ये समस्या 25 -60 वर्ष की उम्र के व्यक्तिओमें देखने को मिलती है। पार कभी कभार ये बच्चो में भी हो सकती है। एकेलेसिआ में अन्ननली के चेता कोषो का किसी अज्ञात कारण वश नाश होता है। एकेलेसिआ कार्डीया में क्या होता है ये समजने के लिए, आइये पहले समझते है की खुराक निगलने की सामान्य प्रक्रिया क्या होती है।
एक आम इंसान जब खाना निगलता है तब उसके अन्ननली के स्नायु तालबद्ध तरीके से संकोचन विस्तरण करते है, जिसकी मदद से निगला हुआ खुराक निचे की और आगे बढ़ता है। स्नायुओ के इस संकोचन विस्तरण को पेरीस्टालसिस कहते है। जब व्यक्ति खुराक निगलता है तब अन्ननली के निचले हिस्सेमें आया LES वाल्व सुस्त यानिकि रिलैक्स होता है , और उसके खुलते ही खुराक जठर में प्रवेश करता है। खाना जठरमे पहुते ही LES वाल्व फिर से मजबुतीसे बंध हो जाता है। ताकि, खाना और जठरमें बना एसिड वापस अन्ननलीमे न जा सके, यानि रिफ्लक्स न हो। एसिड रिफ्लक्स अन्ननलीमे नुकसान पहुँचता है और वहा अल्सर बनाता है, जिससे हार्टबर्न यानि सिनेमे जलन होती है। इसलिए LES वाल्व का कार्य बेहद महत्वपुर्ण है।
एकेलेसिआ के दर्दीओ में चेता कोशो का नाश, दो मुख्य समस्या पैदा करता है, जिससे खाना निगलने की प्रक्रिया में अवरोध पैदा होता है।
पहला, अन्ननली के स्नायुओ का संकोचन यानि पेरीस्टालसिस योग्य तरीके से नहीं होता, जिससे खाया हुआ खुराक उचित तरीकेसे आगे नहीं बढ़ता
दूसरा, LES वाल्व जो खाना निगलने के साथ सुस्त होना चाहिए वो नहीं होता। बंध वाल्व अवरोध पैदा करके खुराक और प्रवाहिको को जठरमे जानेसे रोकता है।
समय के साथ वाल्व के उपरका अन्ननली का हिस्सा चौड़ा हो जाता है और भारी मात्रामे खुराक, प्रवाही और लार वहा जमा होते है।
एकेलेसिआ के दर्दीओकी मुख्य समस्या खाना निगलने में अटकन होती है। खाते समय खुराक और प्रवाही दोनों सिनेमे फसा हुआ हो ऐसा महसूस होता है। इससे कई बार निगलते समय सिनेमे दर्द भी हो सकता है। कई बार सोते समय सिनेमें जमा खाना और प्रवाही वापस ऊपर मुँह तक आ जाता है। इसकी वजहसे नींद में खांसी आना या नाक से पानी निकलनेकी समस्या भी होती है। अन्ननलीमें जमा खाना वहा असर करके हार्टबर्न भी कर सकता है। एकेलेसिआ के ज्यादातर दर्दीओ का वज़न भी कम हो जाता है। ये समस्या काफी धीरेसे बढ़ती है, और इसलिए कई मरीज तक़लीफ ज्यादा गंभीर होने तक तबीबी नहीं लेते। कई दर्दी खानेकी गति कम करके समस्या का हल ढूंढते है तो कुछ दर्दी निगलते समय गर्दन ऊपर करके या कंधा पीछे करके खाना निगलने की कोशिश करते है। एकेलेसिआ के दर्दीको अन्ननलिके कैंसर की संभावना सामान्य व्यक्ति के मुकाबले अधिक होती है, इसलिए समय पर उचित इलाज करना और उचित फॉलो उप करना आवश्यक है।
एकेलेसिआ के लक्षण कई बार पाचन सम्बंधित और समस्या से मिलते जुलते होते है, जिससे निदानमें विलम्ब होता है या गलत निदान होता है। खाना निगलने की समस्या से पीड़ित सभी दर्दीओ के लिए सबसे पहले एंडोस्कोपी और बेरियम डाई स्टडी उचित जाँच होती है।
Upper G I endoscopy
आपके अन्ननली और जठर की अंदर से जाँच के लिए, डॉक्टर लाइट और कैमरे से सज्ज एक पतली और फ्लेक्सिबल ट्यूब आपके गलेसे अननलीमे उतरेंगे। एकेलेसिआ के दर्दीओ में सामान्य तौर पे अन्ननली में खाना और लार जमा हुआ पाया जाता है। एण्डोस्कोप के पसार होनेके लिए LES वाल्व भी सामान्य इंसान की तरह आसानीसे नहीं खुलता। एन्डोस्कोपी करनेका मुख्य उद्देश्य होता हे ये जानना, के खाना निगलने में अटकन अन्ननलीमे गठान, सीवियर अल्सर या कोई फॉरिन बॉडी यानि कोई वस्तु फ़सने की वजह से तो नहीं है।
Barium swallow in Achalasia Cardia. Showing Rat tail appearance
इस टेस्ट में आपको बेरियम नामक गाढ़ा सफ़ेद प्रवाही या पानी जैसा पतला प्रवाही जिसे डाई कहते है, वो पिलाया जायेगा और उसी समय एक्स रे लीया जायेगा। रेडिओलॉजिस्ट डॉक्टर मशीन में इस प्रवाही को अन्ननली से जठर तक जाते देख सकते है। एकेलेसिआ के दर्दीओ के एक्स रे में बेरियम का अन्ननली में अटकना और जमा होना, अन्ननली का चौड़ा होना और अन्ननली का निचला हिस्सा संकुचित पाया जाता है , जो दर्शाता है की LES वाल्व निगलने पर खुला नहीं है। ये जाँच विश्वसनीय होने के बावजूद, कई बार ये बेरियम स्टडी के निष्कर्ष में एकेलेसिआ के लक्षण कई मरीज में नहीं दीखते, खास कर बीमारी के शुरुआती दिनोमे जब अन्ननली ज्यादा चौड़ी न हुई हो तब।
Esophageal manometry study
मनोमेट्री अंतिम पुष्टिकारी टेस्ट है, जो इस बीमारी की पुष्टि के लिए आवश्यक है। ये जाँच निगलते समय हो रहे अन्ननली के स्नायुओंके संकोचन, संकोचन की तीव्रता, और निगलते समय LES वाल्व के शुष्क याने रिलैक्स होने ही मात्रा को नापता है। बीमारिके शुरुआती दिनोमे जब अन्ननली ज्यादा चौड़ी नहीं होती है, तब मनोमेट्री ही बीमारी का निदान कर सकती है। मनोमेट्री एकेलेसिआ के प्रकार तय करने का भी काम करती है। इलाज का परिणाम मेनोमेट्री से पता चलने वाले एकेलेसिआ के प्रकार पर निर्भर करता है। इस तरह मनोमेट्री इलाज का सही विकल्प चुनने में और परिणाम का अनुमान लगाने में’मदद करता है।
एकेलेसिआ कार्डीया के इलाज के बारे में सबसे पहले हमें ये समजने की आवश्यकता है की, अन्ननली के नाश हुए चेता कोष यानि Nerve cells किसी भी इलाज से वापस सामान्य यानि नार्मल नहीं हो सकते। उपलब्ध इलाजो मे से कोई भी इलाज अन्ननली के स्नायुओं के लयबद्ध संकोचन यानि पेरीस्टालसिस में सुधर नहीं कर सकते। सभी इलाज सिर्फ अन्ननली के निचले हिस्से में रहे LES वाल्व को सुस्त बनाके खुला रखने का काम करते है, ताकि वो खुराक के अन्ननली से जठर में जानेमे अवरोध न करे। इसके बाद खाना गुरुत्वाकर्षण की मदद से अन्ननली में नीचेकी तरफ आगे बढ़ता है और वाल्व के अवरोध के बिना आसानी से जठर में प्रवेशता है। इलाज दो प्रकारके होते है सर्जिकल और नॉन सर्जिकल । ज्यादा तर, सर्जिकल विकल्प दर्दीओंकी समस्या लम्बे समय के लिए सुधरनेमे ज्यादा असरकारक होते है।
नॉन सर्जिकल विकल्पों में दवाइयां, एंडोस्कोपिक बोटॉक्स इन्जेक्शन और एंडोस्कोपिक बलून डाइलेटेशन का समावेश होता है। क्यूंकि दवाइयां और बोटॉक्स इन्जेक्शन असरकारक इलाज नहीं है, जयादा तर दर्दीओ को इसकी सलाह नहीं दी जाती और इसलिए हम यहाँ उसके बारेमे बात नहीं करेंगे। यानि नॉन सर्जिकल विकल्प में हमारे पास सिर्फ एंडोस्कोपिक बलून डाइलेटेशन का ही विकल्प रह जाता है।
एंडोस्कोपिक बलून डाइलेटेशन
ये एक एंडोस्कोपिक प्रक्रिया है जिसमे एंडोस्कोप की मदद से बलून को अन्ननली में उतारा जाता है और LES वाल्व के स्तर पर फुलाया जाता है। इस बलून के फुलनेसे वाल्व के स्नायु फटके टूट जाते है और वाल्व खुला रहता है। वाल्व के स्नायुओ को तोड़ने का ये तरीका अपरिशुद्ध यानि inaccurte होना की वजहसे इसके परिणाम सर्जिकल विकल्प जितने अच्छे नहीं होते। जिन मरीजोमे वाल्व खुला का खुला नहीं रेहता उनमे ये प्रक्रिया दोहराने की जरुरत पड़ती है। लगभग एक तृतीयांश दर्दीओ में ऐसा होने की गुंजाईश रहती है। ये प्रक्रिया में अन्ननली के अंदरूनी लेयर जिसे म्यूकोसा बोलते है उसमे छेद होनेकी भी सम्भावना रहती है, जिससे पेट और छातीमे इन्फेक्शन फैलता है। ये कॉम्पलीकेशन होने की सम्भावना २-४% होती है और उसे सुधरने के लिए इमरजेंसी सर्जरी की भी जरुरत पड़ सकती है। बलून डाइलेटेशन की प्रक्रिया में एसिड रिफ्लक्स को रोकने के कोई प्रावधान न होने से, बलून डाइलेटेशन के बाद दर्दी को एसिड रिफ्लक्स होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
सर्जरी एकेलेसिआ कार्डीया से पीड़ित दर्दीओ में लम्बे समय के बेहद अच्छे परिणाम देती है। इसमें LES वाल्व के स्नायुओंको को कैमरे की दृष्टी की निगरानीमें बारीकी से काटा जाता है। सर्जरी से इलाज के दो विकल्प है लैप्रोस्कोपिक और एंडोस्कोपिक। आइये दोनों के बारेमे विस्तार से चर्चा करते है।
ये सर्जरी एकेलेसिआ कार्डीया का गोल्ड स्टैंडर्ड इलाज है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में पेट पर छोटे छोटे छेद करके उसमे से कैमरा और अन्य साधन अंदर डालें जाते है और उसीसे सर्जरी की जाती है।
सर्जन LES वाल्व के स्नायुओ को कैमरे की दृष्टी की मदद से बारीकीसे शिस्तबद्ध तरीकेसे काटते है और वाल्व को खुला छोड़ते है। जिससे खाना आसानीसे जठर में प्रवेश कर सकता है। ये सब कैमरे की निगरानीमें होने की वजहसे वाल्व के स्नायु को काटने का काम यथार्थ तरीकेसे हो सकता है। अगर सर्जरी के दौरान अन्ननली के अंदरूनी लेयर म्यूकोसा में छेद होता है, तो उसे तभी टांके लेकर रीपैर कर दिया जाया है और सर्जरी के अंतिम परिणाम में कोई बदलाव नहीं आता। सर्जरी के दौरान ही एन्डोस्कोपी भी की जाती है, जिसमे वाल्व पूरी तरह खुलजाने की और म्यूकोसा में कोई छेद नहीं हुआ उसकी पुष्टि की जाती है। एक बार वाल्व खुल जाये उसके बाद सर्जन आपके जठर के उपरी हिस्से को मोड़कर हायेटस और वाल्व के कटे हुए स्नायु के साथ टांको से जोड़ देते है। इसे पार्शियल या डोर फन्डोप्लिकेशन कहते है। ये प्रक्रिया खाने और एसिड को जठर से अन्ननलीमे ऊपर जानेसे रोकनेके लिए की जाती है। वर्ना सर्जरी के बाद वाल्व खुल्ला होने की वजहसे एसिड रिफ्लक्स की समस्या होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
सामान्य तौर पर, दर्दी को सर्जरी के दिन ही या तो अगले दिन शाम को हॉस्पिटल में एडमिट किया जाता है। सर्जरी के बाद उसी दिन दर्दी को पहले प्रवाही और उसके बाद में नरम आहार दिया जाता है। सर्जरी के कुछ ही घंटो में मरीज बेड से निकलकर घूम फिर सकते है और दूसरे दिन डिस्चार्ज हो के घर जा सकते है। सर्जरी के दौरान अगर म्यूकोसा मे छेद हुआ हो और उसे रिपेयर किया गया हो, तो डिस्चार्ज में एक या दो दिन का विलम्ब हो सकता है। एक हफ्तेमें आप नार्मल खुराक ले सकते है, पर आपको इस बात का हमेशा खयाल रखना है की आप खाना अच्छे से चबाकर, धीरेसे और आरामसे बैठी हुई अवस्थामे ही खाये।
इस सर्जरी में लम्बे समय के उत्तम परिणाम मिलते है। 70- 90 % दर्दीओंमे लम्बे समय तक समस्या में बेहद आराम रहता है। सर्जरी का परिणाम मनोमेट्री में पता चलने वाले एकेलेसिआ के टाइप और बेरियम में पता चलने वाले अन्ननली की चौड़ाई की मात्रा पर निर्भर करता है। जो दर्दी अपनी समस्या के बारेमे सतर्क होते है और अन्ननली ज्यादा चौड़ी हो जाये उससे पहले सर्जरी करवाते है उनको सर्जरी के परिणाम ज्यादा बेहतर मिलते है। पर जो समस्या तो नजरंदाज करके इलाज को टालते है और सर्जरी अन्ननली ज्यादा चौड़ी हो जाये उसके बाद सर्जरी करवाते है उनके परिणाम उतने अच्छे नहीं होते। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में फन्डोप्लिकेशन भी करने की वजह से एसिड रिफ्लक्स होने की गुंजाईश काफी काम होती है।
ये सर्जरी मुहसे अन्ननलीमे एंडोस्कोप और अन्य उपकरण उतारकर की जाती है। सर्जन आपके गले से एंडोस्कोप अननलीमे उतारकर उसके अंदरूनी लेयर म्युकोसा में स्पैशल उपकरण की मदद से कट यानि चीरा रखते है। फिर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की तरह कैमरे की दृष्टी के तहत अन्ननली के निचले हिस्से और LES वाल्व के स्नायुओं को शिस्तबद्ध तरीकेसे काटा जाता है। अंतमे म्युकोसा के कट को एंडोस्कोपिक क्लिपस की मदद से बंध किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद लैप्रोस्कोपिक सर्जरी जैसा ही सुधार दर्दी की समस्या में मिलता है और शुरुआती समय के बेहद अच्छे परिणाम मिलते है। पर हमें ये समझना होगा की ये सर्जरी तुलनामे नयी है और इसलिए इसके ज्यादा लम्बे समय के परिणाम हमें देखने पड़ेगे।
आमतौर पर मरीज को सर्जरी के दिन या पिछली रात में भर्ती किया जाता है। सर्जरी की तैयारी के एक भाग के रूप में, रोगियों को सर्जरी से पहले 2 दिनों के लिए स्पष्ट तरल आहार लेने की सलाह दी जाती है। यह आवश्यक है क्योंकि सर्जरी के लिए भोजन नली की भीतरी परत को काटना अनिवार्य है। उसके कारण से, आपका सर्जन चाहता है कि सर्जरी के समय आपकी अन्ननली साफ हो, और भोजन के कणों से भरा न हो। सर्जरी के कुछ घंटों के बाद दर्दी बिस्तर से उठ सकता है और घूम सकता है। सर्जरी के लगभग 2 दिन बाद तरल आहार शुरू किया जाता है और उसके बाद कुछ और दिनों के बाद नरम आहार लिया जाता है। आहार में प्रारंभिक प्रतिबंध की सलाह दी जाती है कि अपने अन्ननली की भीतरी परत में कटौती की मरम्मत के लिए आराम दें।
POEM के बाद निगलने में सुधार बहुत अच्छा है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के साथ देखा जाने वाला सुधार के लगभग बराबर। इस सर्जरी का मुख्य मसला ये है की एंडोस्कोपिक सर्जरी में एंटी रिफ्लक्स प्रक्रिया यानि फन्डोप्लिकेशन नहीं किया जाता। इसलिए करीब 40 -60 % मरीजों को सर्जरी के बाद एसिड रिफ्लक्स की समस्या होती है। ऐसे दर्दीओ को लम्बे समय के लिए एंटासिड दवाइयां लेने की जरुरत पड सकती है।
एकेलेसिआ का कोई भी इलाज उसके बीमारी के मूल समस्या को नहीं सुधार सकता और ये मरीजों में अन्ननली के केन्सर की सम्भावना भी आम इंसान से ज्यादा होती है, इसलिए लम्बे समय का नियमित फॉलो-अप आवश्यक है। फॉलो-अप का मुख्य हेतु फिरसे उठने वाले बीमारी के लक्षण और GERD जैसे कॉम्पलीकेशन का सही समय पे निदान और इलाज करने का होता है।
एकेलेसिआ कार्डिया और GERD सहित अन्ननली(एसोफेजेल) की गतिशीलता संबन्धित समस्याएं और उनके इलाज में हमे विशेष दिलचस्पी है और इसलिए हम उनका इलाज बेहतर और उत्कृष्ट परिणाम के साथ कर पते है। हमारा केन्द्र इन स्थितियों के पूर्ण मूल्यांकन और उपचार के लिए सभी सुविधाओं वाला केंद्र हैं। हम उन गिने-चुने केंद्रों में से हैं जहां इसोफेजियल मैनोमेट्री और 24 घंटे पीएच के साथ इम्पिडेंस स्टडी की सुविधा है। एड्रोइट एक केंद्र के रूप में और इन स्थितियों के विशेषज्ञ के रूप में डॉ चिराग ठक्कर के पास इन समस्याओं से निपटने का एक विशाल अनुभव है। हम अच्छी तरह से समझते हैं कि मरीजों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। और उपचार और सर्जरी के अलावा, हम अपने रोगियों को समग्र रूप से उत्कृष्ट परिणाम देने के लिए अतिरिक्त प्रयास करते हैं। यही कारण है कि हमारे केंद्र में दर्दीओ को परिणाम के साथ-साथ संतुष्टि भी बहुत अधिक है। और यही कारण है कि मरीज़ हमें एकेलेसिआ कार्डिया के इलाज में सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।